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Sadhna Mishra

Abstract

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Sadhna Mishra

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नई शुरुआत

नई शुरुआत

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बहा कर आंख से मोती

नई शुरुआत करती हूं।

कोई जब साथ ना देता

कलम का साथ लेती हूं।


मैं अक्सर याद कर तुझको 

आंखें भिगोती हूं।

तेरी चाहत की चाहत हूं

 तसल्ली खूब करती हूं।


खारा पन निगाहों का

मैं खुद से दूर करती हूं।

गुरबत में दुआओं की

सदा भरपूर लेती हूं।


मरने से पहले जीने का 

मजा भरपूर लेती हूं।

गुलामी तोड़ आंखों से

इबादत़ खुद की करती हूं।


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