मन के हारे हार मन के जीते जीत
मन के हारे हार मन के जीते जीत
खाई पर्वत का स्वभाव है,
राहों में बाधा पहुंचाना ।
क्या उचित है सबके लिए,
अकेलेपन में घिर जाना।
कठिन काम करने वाले ही ,
तो इतिहास बनाया करते हैं।
डर जाने वाले अकेलेपन में,
पछताया करते हैं।
अपनी सीमाओं की रक्षा ,
जो हंसते-हंसते करते हैं ।
ऐसे वीर सपूत हमारे ,
अकेले सरहद पर लड़ते हैं।
भारत की बालाओं ने,
जब जौहर को अपनाया
मुक्त कंठ से एक स्वर में,
अकेलेपन को ठुकराया।
गर्व हमें अपनी धरती पर
अगणित तीर्थ धाम है जो
भावनाओं का सम्मान यहां
अकेलेपन का क्या काम यहां।।
