क्या खोया है क्या पाया
क्या खोया है क्या पाया
खुद को खुद से खींच रहा हूं
भीगी पलकें मींच रहा हूं।
क्या बोया था क्या पाया है
रह रह कर अब सोच रहा हूं।
खुद से खुद को खींच रहा हूं
भीगी पलकें मींच रहा हूं।
मृत काया सा जीवन जीता
हाला बहता अपनेपन का
अंतस में मैं देख रहा हूं।
खुद को खुद से खींच रहा हूं
भीगी पलकें मींच रहा हूं।
खुशहाली के एहसासों को
तिल तिल मरता देख रहा हूं।
खुद को खुद से खींच रहा हूं
भीगी पलकें मींच रहा हूं।
अरमानों की सिमटी बेले
कड़वे बोल बहुत है झेले।
खुद को खुद से खींच रहा हूं
भीगी पलकें मींच रहा हूं।
बोध कराया जिन लम्हों ने
मौन उन्ही को सोच रहा हूं।
खुद को खुद से खींच रहा हूं
भीगी पलकें मींच रहा हूं।
गिरकर आंखों से जो टूटे
उन सपनों को समेट रहा हूं।
खुद को खुद से खींच रहा हूं
भीगी पलकें मींच रहा हूं।
हमदर्दी की कलाई उतरी
खुदगर्जी को देख रहा हूं।
खुद को खुद से खींच रहा हूं
भीगी पलकें मींच रहा हूं।