नानी का घर
नानी का घर
ग्रीष्मकाल का अवकाश आते ही
मुझे ननिहाल बहुत याद आता है
माँ की भी माँ होती है वो जिसको
हम पर इतना सारा दुलार आता है।
जिसकी गोद मे कभी मेरी माँ पली बढ़ी थी
उस गोद का मिलना सुखद अनुभूति कराता है
नानी की कहानियों का अक्सर ख्याल आता है
नाना संग खेत की पगडंडी पर चलना बुलाता है।
मामा, मौसी संग हँसी ठिठोली, मोरों की मीठी बोली
आँगन मे लगे नीम के पेड़ की निंबोली
गाँव के मित्रों संग खेलना, आँख मिचौली यह सब
ग्रीष्मकालीन अवकाश आते ही मुझे बुलाता है
माँ को भी मेरे बहाने ही सही,
कुछ दिन का अवकाश मिल जाता है
माँ का माँ के आँचल से लिपट कर फिर से
बच्चा बन जाना मुझको बहुत लुभाता है
ग्रीष्मकालीन अवकाश आते ही ननिहाल
मेरी स्मृति पटल पर यादों का चित्र
सजीव कर जाता है।
माँ की माँ को माँ कहकर ही
ये अंजान बुलाता है।
