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Nirav Rajani "शाद"

Drama

4.5  

Nirav Rajani "शाद"

Drama

महताब

महताब

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कभी तो अब्र से बाहर आकर

वसल कर ए महताब,

मुख़्तसर वसल में कभी तो

दीद करा अपना असबाब।


तेरे बिना हर दिन यूँ बीता

जैसे युग बीते ए महताब,

कभी तो मुख़्तसर में आके

दीद करा जा महताब।


तू रूठा तो यूँ लगे जैसे

रूठी महबूबा महताब,

कभी तो अबसार की तरह

मुसलसल हो जा ए महताब।


"शाद" तेरे बिना

अधूरा है ए महताब,

कभी तो तसव्वुर

बहला जा ए महताब।।


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