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prem परमानन्द

Drama Romance Tragedy

4  

prem परमानन्द

Drama Romance Tragedy

काश तुम

काश तुम

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काश ! तुम मुझे समझते

क्यों तुमने न समझा मेरे प्यार को,

क्यों तुम न जान पायी मेरे इक़रार को।


दिल तुमसे से लगाया, किया गुनाह तो नहीं,

दिल में तुझे बसाया, किया बर्बाद तो नहीं।


क्यों ज़िद पर अड़ जाती हो तुम?

हर बात पर लड़ जाती हो तुम।


बेपनाह महोब्बत है मुझे तुमसे, तुम्हारी बातों से,

प्यार दिल से किया है, मोहताज नहीं मुलाकातों के।


तेरी हर पीड़ा, तेरे सारे कष्ट मेरे अपने हैं।

स्वीकार मुझे सभी हैं, न केवल सुन्दर सपने हैं।


कैसे स्वीकार करुँ मैं, जो तेरा कोई अपमान करे,

सहन किसी का नहीं मुझे, फिर चाहे तू स्वअपमान करे।


काश तुम समझ सकती मेरे जज्बातों को,

काश तुम समझ सकती मेरे अरमानों को।


तुम किस आज़ादी की बात करती हो,

जब कोई बंधन ही नहीं,

तुम किस हँसी की बात करती हो,

जब कोई रुदन ही नहीं।


देख मेरी आँखों में इनमें कितनी सच्चाई,

अपार प्रेम भरा है सिर्

फ तुम्हारे लिए।

उतर कर देख ज़रा मेरी साँसों के पथ से,

मेरे दिल में मेरी रूह में।


और कुछ नहीं मुझे सिर्फ तू चाहिए,

तेरा साथ तेरा प्रेम चाहिए।

अब मेरी जान, है निष्प्राण सी,

तू बता तुझे और क्या प्रमाण चाहिए।


काश तुम रूठ जाती, तो तुम्हारे हाथ जोड़ता,

पैर पड़ता पर मैं तुम्हें मना भी लेता।

तुम तो आज़ादी चाहती हो,

मैं खुद तेरा गुलाम तुझे कहाँ से देता।


तुम बात करती हो अधिकारों की,

ये दोस्ती के अधिकार हैं मैं समझा ये प्यार है।

नासमझ हूँ, न समझ ही आया मुझे

अधिकार भेद करना, दोस्ती और प्यार में विभेद करना।


मुझे नहीं लेनी जान, तुम मत देना अपनी जान।

अब तो मोहर भी लग चुकी है।

आपने इश्क़ पे क्या लिख दिया,

वो भी अपना फैसला सुना चुकी हैं। 

धन्य हैं वो जो आपको सही राह दिखा चुकी हैं।


अच्छा किया आज समझा दिया,

अपना अन्तिम निर्णय भी सुना दिया।

काश ! तुम समझ सकती।


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