Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

4.6  

Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

कविता के लिए विषय

कविता के लिए विषय

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कुछ दिनों से लिखने के लिए मैं बेचैन हो रहा था....

लेकिन विषय ही नही मिल रहे थे...

जहाँ तहाँ मैं विषय ढूंढने लगा...

अडोस पड़ोस में...

अख़बारों में...

टी वी की ख़बरों में...

लेकिन ना विषय मिले और ना ही लिखना हुआ...

न जाने सारे विषय कहाँ खों गये थे ?


इन्हीं सोचों में गुम होकर मैं बाज़ार के लिए निकल पड़ा...

अर्से के बाद मै बाज़ार जा रहा था...

आज पहली बार मुझे बाज़ार कुछ अलग लगा...

दुकानें खुली थी...

लेकिन ग्राहक ?

ग्राहक नदारद थे...

एक दुकानदार को मैंने यूँही पूछा

"कारोबार कैसा है ?"

वह बिना कुछ कहे हँसने लगा...

एक बेहद फीकी हँसी...

उस फीकी हँसी ने जैसे बाज़ार का सारा हाल कह दिया था...


वापसी में चौराहे के कोने की दुकान की तरफ़ मेरा ध्यान गया...

कोने वाली फूलों की दुकान बंद थी...

आज फूलों की खुशबू नदारद थी...

फूलों की अब किसे जरूरत है मंदिर जो बंद है...

मंदिरों में भगवान भी तालें में बंद है

और त्योहार भी नाम के हो गए है

फिल्मों की अब किसे जरूरत है ?

फैशन की किसे जरूरत है ?

हॉटेल जाने की जरुरत है ?

न किसी घर मे आना जाना न कोई दुआ सलाम...

अब बस रोटी, कपड़ा और मकान का सवाल है...

हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स,टीवी और सस्ता इंटरनेट......

दुनिया चलती ही जा रही है.....


मैं कोई आम कवि नहीं हूँ जो किसी पर भी लिखना शुरू कर दूँ

मै क्यों गरीब के रोजगार की बात पर कविता लिखूँ ?

उसके पास रोटी ना होने पर कविता लिखूँ ?

टूटी झोपड़ी से उसे चाँद का नज़ारा होता है यह क्या कम है ?

गरीबी, भुखमरी के अलावा भी तो दुनिया है...

जिन पर मेरे जैसे कवी कविता लिख लेते है

मुझे विषय की तलाश में निकलना होगा...

मुझे आज फिर एक कविता लिखनी है...


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