एक्टिव पैसिव
एक्टिव पैसिव
लाइब्रेरी में आज किताबें देखने का मौका मिला...
उन किताबों में कुछ कविताएँ दिखी...
उन अधखुले पन्नों में कुछ कविताएँ बेहद गहरी थी...
कवि के गहरे अहसासात का खुलेपन से चित्रण था....
कुछ कविताओं में किस्सों का ज़िक्र था...
और कुछ में कहानियाँ बावस्ता थी....
उस किताब में कुछ कविताएँ तितलियों पर थी....
कुछ कविताओं में कैक्टस की बातें थी..
उन छोटी छोटी कविताओं में कुछ बड़ी बड़ी बातें थी...
उन छोटी छोटी कविताओं में कुछ गहरी बातें थी.....
पाठकों को तरसती लाइब्रेरी में रखी किताबें एकदम पैसिव लगने लगी है...
जब किताबें ही पैसिव होगी तो उनमें मौजूद कविताएँ भी पैसिव ही होगी अपने पाठकों की तरह..
उन पैसिव कविताओं से... उन पैसिव किताबों से क्या कोई क्रांति होगी?
क्रांति और किताबें छोड़ लोग आज रील देखने में एक्टिव होने लगे है...
पैसिव और ज्यादा पैसिव हो गए है और एक्टिव और कम एक्टिव....