ज़ीनत-ए-अंजुमन
ज़ीनत-ए-अंजुमन
कभी तो मेरी ज़ीनत में आ
ए मेरी ज़ीनत-ए-अंजुमन।
तेरी फ़क़त को तरस रही मेरी ज़ीनत
मेरी एहतियाज करे तुझे नमन।
मुस्तक़िल हो रही है तेरी पुर्सीश
अब तो आ ही जा करके भी तू तौहीन ए अमन।
आफरीन है "शाद" तुझपे ए ख़्वाबिदा
होकर तुझको मुंतजिर कर लूंगा मैं ज़्क़त-ए-अलम।