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Nirav Rajani "शाद"

Abstract

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Nirav Rajani "शाद"

Abstract

जाते हैं

जाते हैं

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कभी कभी हम तुम्हारे नाम पे भी पी जाते हैंं ,

और वो हर वक्त कहते हैं आओ कहीं जाते हैं।


थे हम वली और बनाया उसने बादाख़्वार ,

अब उसके दर पे हो जो वली वहीँ जाते हैं ।


मैकशी तो नही आती मीना मुझे तेरे जितनी ,

शब-ओ-रोज हम तेरे जाम पे ही जी जाते हैं ।


जीने के लिए एहतियाज नही आपकी "शाद" को

कभी कभी लोग हमारे नाम पे भी जी जाते हैं ।


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