जगजीत
जगजीत
ग़ज़ल का दूसरा नाम ही जगजीत है,
सुनो ध्यान से तो वो हरएक का मनमीत है।
आए बम्बई और महेनत से कमाया नाम,
नौ-जवानोने आपसे पाई यहीं सिख है।
छेड़ते थे साज़ ग़ज़ल के जब लेते थे आलाप,
तब लगता था लोगों को की यहीं प्रीत है।
कभी आपको मशहूर शख्सियत ना था गुमान,
मौजूद है रवायत आजभी जगमे यहीं जीत है।
'सादगी, नम्रता और बड़प्पन' यहीं थे उसूल,
सिखाया जग को की यहीं जीवन की रीत है।
जगजीत रूह-ए-सफर है, नाम से ना जानो,
वो आज कोई और नाम से हमारे बीच है।
वो ग़ज़लों की शामो में, वो रूहानी महफ़िलो में,
"शाद" आज हर घरमें अमर जगजीत है।