तेरी फ़क़त को तरस रही मेरी ज़ीनत मेरी एहतियाज करे तुझे नमन। तेरी फ़क़त को तरस रही मेरी ज़ीनत मेरी एहतियाज करे तुझे नमन।
विरान ज़िंदगी के सैकड़ों कारवां थे इनायतें रहनुमाई एक रिश्ता पाया मैंने। विरान ज़िंदगी के सैकड़ों कारवां थे इनायतें रहनुमाई एक रिश्ता पाया मैंने।
अब सोचिये तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए दीवार ओ दर को छोड़ के सहरा में आ गए। अब सोचिये तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए दीवार ओ दर को छोड़ के सहरा में आ गए।
साक़ी से पूछो की जमाल-ए-मै कहाँ है ? साक़ी से पूछो की जमाल-ए-मै कहाँ है ?
की क्यों इंसान इतना निष्ठुर हो जाता है, क्यों वो अपने फर्ज़ को भूल जाता है की क्यों इंसान इतना निष्ठुर हो जाता है, क्यों वो अपने फर्ज़ को भूल जाता है
सिहर गई रात, ठिठुर गया दिन भटकती फिरे नज्म, खोया खुर्शीद आप। सिहर गई रात, ठिठुर गया दिन भटकती फिरे नज्म, खोया खुर्शीद आप।