मैं साथ दूंगा न...
मैं साथ दूंगा न...
जो तुम अगर कहते तो मैं रुक जाता।
दीवार पे लगी घड़ी की बैटरी निकाल देता,
कुछ पल के लिए ही सही,
हम साथ चलते, और समय रुक जाता।
याद है ना मुझे वो पल जब,
हम पार्क में घूमने निकले थे।
कैसे मेरे भद्दे से मज़ाक पर भी तुमने,
ठहाके मार के हँसना शुरू कर दिया था।
और आस पास के लोग भी
तुम्हें देख कर मुस्कुरा उठे थे।
फिर तुमने सहम के अचानक,
मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया था।
कितनी सादगी से तुमने उस पल को
अपनी खूबसूरती के संग खूबसूरत बना दिया था।
तुम आज भी मुझे देख कर फिर
एक बार यूं ही मुस्कुरा देते।
मैं तुम्हारे साथ में ज़िन्दगी भर मुस्कुराने को,
इस वक्त के जैसे ही ठहर जाता।।
पता है न, तुम्हारी कौन सी बात
सबसे अच्छी लगती है मुझे ?
जो ये खिलखिला कर जोरों से हंसती हो तुम,
आज भी महफिल में जान तुम जानबूझकर,
बेपरवाह बेशुमार बिखेरती हो तुम।
आज भी लोगों के लिए तो ज़िंदादिली
की जीती जागती मूरत हो तुम।
लोगों को नहीं पता,
पर मुझे तो पता है ना...
कि आज वो जान तु
म जानबूझकर,
अपनी जान में से निकाल कर लुटा रही हो न।
कि आज भी तुम्हें खुश रहना अच्छा लगता है,
पर खुश होने का मन नहीं करता।
क्यूं नहीं तुम मुझे अपनी जान का,
फिर एक हिस्सा बना लो ना?
मैं अपनी जान भी तुम्हें ही दे दूंगा।
ताकि तुम्हें फिर जान लुटाने में,
कभी कोई कमी ना रह पाए।
और शायद मुझे भी जीने की,
फिर से वह वजह मिल जाए,
जो पहली बार मुझे उस पार्क में मिली थी।
जब सहम के तुमने घबराहट में,
मेरा हाथ पकड़ लिया था।
और मैंने तुम्हारे कांधे पर धीरे से,
अपना हाथ रखकर ये एहसास दिलाया था,
कि सब ठीक है।
और तुमसे बिना कहे एक वादा किया था,
कि मैं हमेशा साथ दूंगा न।
कि तुम कहोगी अगर तो मैं,
वक्त को भी रोक दूंगा ना।
मैं वक्त को भी रोक दूंगा ना।
आज फिर एक बार,
बस एक ही बार, ये कह दो ना...
कि मैं रुक जाऊं,
कुछ पल के लिए ही सही...
बस रुक जाऊं।
मैं दीवार पे लगी घड़ी की बैटरी निकाल दूंगा,
और रुके हुए समय की तरह,
बस यहीं थम जाऊंगा न।
मैं सदा के लिए बस यहीं थम जाऊंगा न।।