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Akash Agrawal

Abstract

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Akash Agrawal

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शब्दों की भीड़

शब्दों की भीड़

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मैं शब्दों की भीड़ में उसे ढूँढता रहा,

वो निःशब्द, इक आवाज़ सा मुझे पुकार रहा था।

ज़माने भर में घूमकर, उसका इक निशां ढूंढता रहा मैं,

वो बे-निशां, हर कहीं मेरे साथ ही घूम रहा था।

मैं स्याही को सहेज़ कर उसे आकार में बदलता रहा,

वो निराकार खुद स्याही बनकर, मेरी उँगलियों को दिशा दे रहा था।

मैं चिराग में आग भरकर उसे अंधेरों में ख़ोजने निकला था,

वो आग सा इक तेज़ बनकर, मेरे अन्दर ही जल रहा था।


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