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Akash Agrawal

Romance

4.8  

Akash Agrawal

Romance

पागलपन

पागलपन

1 min
357



हर कहीं तो बस पागलपन है

लगता है जैसे,

तुम्हारा पागलपन ही 

बस एक समझदारी है।


जो ये तुम्हारी सादग़ी है,

वो कोई पागलपन से कम तो नहीं,

लोगों को पाग़ल सा बना देती है।


जो ये तुम्हारी सांसों की ताजगी है,

लोगों को सुबह की ठंडी हवा का,

एहसास दिला देती है।


उन्हें नींद से जगा देती है,

पल भर के लिए जैसे,

अपनी ही सांसों का हिस्सा बना लेती है।

लगता है जैसे,

इन साँसों में जो नशा है,

वो किसी और नशे में नहीं।


बेफिक्री में उलझी हुई बालों की लटें,

जो चेहरे को ढ़क लेती हैं तुम्हारे।

कभी सूरज को चाँद से ग्रहण लगते देखा है?


ये उलझी हुई बालों की लटें ऐसे,

तुम्हारी खूबसूरती में भी,

चार चाँद लगा देती हैं।।


ग़र साथ हो तुम्हारा

तो हवाएं भी शायरी पढ़दें।

तुम्हें छूने के बहाने,

वो ज़ोरों से धड़कें,

फ़िर धीमे से तुम्हारे होठों को

छू कर थम जाएं।


कोई पागल ही होगा,

जो तुम्हे देख कर भी,

पाग़लपन की हद को ना समझे।।


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