बादल
बादल
आसमानी बादल, चिर बंजारे !
मोतियों की क़तार जैसे नीले मैदानों में
चले जाते हो, मेरी तरह, ऐसे, जैसे, कोई निर्वासित,
दक्खिन की ओर लुभावने उत्तर से।
कौन खदेड़ता है तुम्हें: क्या क़िस्मत का है फ़ैसला ?
या छुपी हुई ईर्ष्या ? या खुल्लम खुल्ला दुश्मनी ?
या बोझ है मन पर किसी अपराध का ?
या दोस्तों की निन्दा ज़हरीली ?
नहीं, उकता गये हो तुम बंजर खेतों से...
अनजान हो तुम इच्छाओं से, तकलीफ़ों से;
भावरहित सदा, सदा हो आज़ाद,
ना कोई जन्मभूमि है तेरी, ना है देश निकाला।