ओ, काले पर्वत!
ओ, काले पर्वत!
ओ काले पर्वत,
समूची रोशनी खा जाने वाले!
बस – हो गया – आ गया वक़्त
विधाता को टिकट लौटाने का।
करती हूँ इनकार – अपने होने से
लोगों की आपाधापी में,
करती हूँ इनकार जीने से
चौराहे के भेड़ियों के साथ।
इनकार करती हूँ – बिसूरने से
मैदानों की शार्कों के साथ
इनकार करती हूँ तैरने से – नीचे
पीठ के बहाव के साथ।
नहीं चाहिए मुझको छेद
कानों के, न ही भविष्यसूचक आँखें
तुम्हारी बदहवास दुनिया को
जवाब है, बस – इनकार।
