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Charumati Ramdas

Abstract

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Charumati Ramdas

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ओ, काले पर्वत!

ओ, काले पर्वत!

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ओ काले पर्वत,

समूची रोशनी खा जाने वाले!

बस – हो गया – आ गया वक़्त

विधाता को टिकट लौटाने का।


करती हूँ इनकार – अपने होने से

लोगों की आपाधापी में,

करती हूँ इनकार जीने से

चौराहे के भेड़ियों के साथ।


इनकार करती हूँ – बिसूरने से

मैदानों की शार्कों के साथ

इनकार करती हूँ तैरने से – नीचे

पीठ के बहाव के साथ।


नहीं चाहिए मुझको छेद

कानों के, न ही भविष्यसूचक आँखें

तुम्हारी बदहवास दुनिया को

जवाब है, बस – इनकार।


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