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Jaya Tagde

Drama Tragedy

1.4  

Jaya Tagde

Drama Tragedy

इसे इत्तेफाक ही कहिए

इसे इत्तेफाक ही कहिए

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इसे हाल ए दिल न कहिए

इसे इत्तेफ़ाक ही कहिए।


राह आसान थी मगर चल न सके हम

आड़ी तिरछी पगडंडी न थी

न पाँव में बेड़ियाँ न ज़मीं थी पथरीली।


न साये का डर न अँधेरा इस कदर

न चुभती निगाहों का ख़ौफ़ था

न नज़रों से नज़ारों का नज़ारा नज़र आया

ये फलसफा दिल का अब क्यों समझ आया।


इसे मुहब्बत न कहिए

इसे इत्तेफ़ाक ही कहिए।


शून्य में झांकती ये बेबस निगाहें

किसे हे ताकती ये समझ न पाए

न राह कोई रोके न काँटे बिछाए।


मंज़िल का खुद ब खुद दूर हो जाना

जहाँ से चले फिर वही कैसे नज़र आए

इस मंज़िल से उस मंज़िल का

माज़रा अब क्यों समझ आया।


इसे ख्वाहिश न कहिए

इसे इत्तेफ़ाक ही कहिए।


एक कदम भी साथ न चले

तब ये फसाना क्यों याद आया

जब कोई ख्वाहिश थी ही नहीं दिल में

फिर ये तराना क्यों गुनगुनाया।


ये अजब सा अहसास क्यों ज़ुबाँ पर आया

जब कश्ती थी ही नहीं मझदार में

तब तूफान से लड़ना क्यों समझ आया।


इसे बेइंतहा इश्क का जादू न कहिये

इसे इत्तेफ़ाक ही कहिए।


अपने प्रेम का तराना कभी लिख न पाया

न कलम छूटा न कागज़ ने साथ छोड़ा

अपनी ही कहानी का किरदार समझ न आया

ये फलसफा इस प्रेम का अब तक रोक न पाया।


इसे मंज़िल का दोष न कहिए

इसे इत्तेफ़ाक ही कहिए।


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