इंसानियत
इंसानियत
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धर्म कर्म के फेर में पड़े
सही गलत न समझ पाए
इंसानियत का धर्म छोड़कर
पांखड का रास्ता अपनाए
जो दीखता है उस पर
यकीन नहीं
जो न दिखे उस पर आस्था है
अजब सी मायावी बुद्धि लिए
एक दूसरे से लड़ता है
शरीर की रचना एक है
ज़रूरतें भी एक सी
लहू का रंग भी न बदल सका
मानव तरक्की कर चुका
मंदिर मस्जिद खुद बनाए
चमत्कार की आशा लिए
चर्च गुरूद्वारे में सर झुकाए
शायद कुछ भला हो जाए
बात ज़रा सी समझ न सका
जो दिखता है वही सत्य है
व्यर्थ आडम्बर में समय गंवाए
क्यों न धरती को सुंदर बनाए
धर्म से न किसी को पहचाने
इंसानियत का मार्ग अपनाए