मेरे कर्म
मेरे कर्म
इंसान जो हे खुदगर्ज़ बड़ा
नन्हा सा इंसान कभी बड़ा न हुआ
हर वक्त दूसरों से जला
संतुष्ट कभी जीवन से न हुआ।
अदना था अदना ही बना
जिसने सींचा उसे ही छोड़ चला
इतना साथ भी न निभा सका
बन न पाए कभी वृक्ष सा बड़ा
नन्हा सा पौधा वृक्ष बना।
वृक्ष का ओहदा हम सबसे बड़ा
वृक्ष हरदम साथ निभाए
जिये तब भी फल दे
मर जाए तब भी साथ निभाए।