एहसास
एहसास
कभी खुद को मैंने देखा नहीं कभी पहचाना नहीं
हूँ परेशान मैं या नहीं यह तो कभी जाना नहीं।
अपनी हालत का बला कब कैसे एहसास होता
किसी कोने मे रखा मैंने कभी कोई आईना नहीं।
गम की नुमाइश करे यह सलीका कभी सीखा नहीं
रखी गुफ्तगू मुख़्तसर जानते थे साथ देगा ज़माना नहीं।
शिद्दत से हमने खूब निभाई हर मुकाम पर
ए वफ़ादारी तेरे मापने का कोई पैमाना नहीं।
आज तकलीफें दरकिनार एहसास ज़िंदा हो गया
मतलब के रिश्ते खूब हुए मतलबी रिश्ते निभाना नहीं।
ए दिल तू ज़िंदा न मर ज़िन्दगी है अमानत ऊपर वाले की
दुनिया चाहे पत्थर हो जाये कभी खुद को पत्थर बनाना नहीं।।