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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama

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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama

अपूर्णता में पूर्णता

अपूर्णता में पूर्णता

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बहुत दिनों के बाद

स्कूल वाली सहेली से मिलना हुआ....

ढेरों बातें हुयी....

कुछ स्कूल की....

कुछ कॉलेज की......

वह अपनी शादीशुदा जिंदगी की बातें करती रही....

उसकी बातों मे पति शामिल था.....

बच्चे शामिल थे.....

सोने चांदी के जेवरातों की बातें थी....

और सिनेमा के साथ टीवी की बातें भी थी....


जैसे ही उसकी वह बातें खत्म हुयी वह मेरे बारे में जानने को आतुर हुयी....

मंगलसूत्र ठीक करते हुए वह पूछने लगी.....

तुम्हारे पति क्या करते है?

कितने बच्चे है?

शादीशुदा जिंदगी कैसे चल रही है?

घर खूबसूरती से कैसे रख लेती हो?

मैंने उसे थामते हुए कहा.....

मैं एक प्रोफेशनल इंजीनियर हुँ.....

इस शहर में मेरी सरकारी नौकरी है...

और मैं 'सिंगल' हूँ.....


मेरे 'सिंगल' होने की बात सुनकर उसकी आँखों मे एक चमक दिखी....

विजयी होने की चमक....

एक मर्द को बाँध लेने की चमक....

मेरी पोजीशन से वह हर्षित नहीं हुयी....

बल्कि उन आँखों में मेरे लिए हीनता नज़र आ रही थी....

उन आँखों मे मेरी शादी न होना मेरी हार थी....

क्योंकि मैं एक मर्द को न पा सकी....

उन आँखों में मेरे लिए उलाहना था....

इतनी पढ़ाई फिर किस काम की ?


उस मुलाकात के बाद मैं सोचने लगी.....

कुछ औरतों की जिंदगी में मर्द का होना ही सब कुछ होता है....

किसी मर्द को पा लेना ही उनकी उपलब्धि होती है.....

वह जैसे उसी में सम्पूर्णता पा लेती है....

वह भूल जाती है कि इस सम्पूर्णता में वह कितनी अपूर्ण है.....

उस मर्द की कलई से वह चमकती है....

मर्द की कलई में वह अपने वजूद और पहचान को भी भूल जाती है....

पता नही इन औरतों की कलई कब उतरेंगी?

कब वे समझ लेगी कि मर्द के बिना भी उनका अस्तित्व है?

अपनेआप में भी वह सम्पूर्ण है......

उसके बिना अपूर्ण नहीं.........


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