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Archana Tiwary

Drama

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Archana Tiwary

Drama

चलो संग चाय पीते हैं

चलो संग चाय पीते हैं

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आज धूप कुछ गुनगुना रही है हवाओं में खुशबू फैल रही है 

सूरज की किरणों में चमक है

बहकी बहकी पंछियों की आवाज कानों में रस घोल रही है

सड़कों पर मोर नाच रहे हैं बगिया के फूल झूम-झूम बुला रहे हैं 

समय का कोई एहसास नहीं किसी के आने की आस नहीं 

तेरे संग एक एक पल कितना बेफिक्र सा है थम थम सी गई है

जिंदगी की रफ्तार भी सुनो, रुको जरा हाथ दो 

वो जो लम्हे कल के लिए बचा रखे थे चलो उन्हें आज ही लेते हैं 

यही सोच याद आई तुम्हारी कही वह बात साड़ी क्यों नहीं पहनती हो,

पहना करो बहुत अच्छी लगती हो 

वो जो झुमके पहन लाल बिंदी लगाती हो न

सचमुच एक ग़ज़ल सी दिखती हो 

यही सोच वह लाल साड़ी निकाल लाई हूं


पिछले साल जो बड़े प्यार से तुमने दिया था सहेज रख दिया था

दीदी के बेटे की शादी में पहनूंगी या फिर ननद की बेटी की

सगाई में पहनकर इतरा कर तुम्हारे सामने चलूंगी 

तभी उन झुमकों और कंगनों से आवाज आई 

अनदेखे पल का इंतजार क्यों खोल दो खिड़कियों को 

धूप का टुकड़ा अंदर आने दो 

उस कल के इंतजार में आज को क्यों जाने दूँ

लो आ गई मैं श्रृंगार कर फिर तुम्हारे सामने

देखा है मैंने अक्सर कुछ रिश्ते रूठ कर बैठ जाते हैं चौखट पर 

चलो गुल्लक में संभाले सपने को निकालते हैं

हम तुम साथ बैठ मीठी बातों संग चाय पीते हैं


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