दिल की बात
दिल की बात


उसकी आंखें थी या कोई चांद ढल रहा था,
उसके होंठ थे या कोई गुलाब खिल रहा था,
उनको देखते ही ये दिल अजीब से सपने बुन रहा था,
यूं उनका दीदार करा कर खुदा भी कोई साज़िश कर रहा था,
ये दिल मेरा होकर आज उनके लिए धड़क रहा था,
मिलने को दिल करा पर मैं लोक लाज की सोच रहा था,
कलम उठा कर मैं कागज पर इजहार ए मोहब्बत लिख रहा था,
सारी रात मैं रिश्ते की माला पीरो रहा था,
सुबह हुई तो उनका सामना करने से दिल डर रहा था,
ये क्या था जो मैं महसूस कर रहा था,
क्या उनको भी ये सब महसूस हो रहा था,
वो अचानक समाने आ गई मेरा तो खुद पर से काबू छूट रहा था,
कैसे कहे हाल ए दिल मैं तो सही मौका ढूंढ रहा था,
वो काफी शांत थी मेरा तो रोम रोम शोर से गूंज रहा था,
उनकी आवाज़ में मानो कोई सूफी संगीत सुनाई दे रहा था,
वो चली गई जब शहर से तो लगा ये शरीर बस सांसे ले रहा था,
ज़िंदा हो कर मैं मौत सी ज़िन्दगी जी रहा था,
वो खत देख कर आज मैं पछता रहा था,
अपने जज्बात कागज पर देख मैं हँस रहा था
क्यों कुछ ना कह सका उनसे आज खुद को कोस रहा था,
कही किसी राह वो मिलेगी इस आस में दिल जी रहा था,
उनकी तस्वीर ले कर मै अरसे से उनका इंतजार कर रहा था,
ये सांसे रुकी नहीं शरीर आज भी आहें भर रहा था,
मेरी खैर की कोई तो दुआ कर रहा था,
बारिश रुकी नहीं सारी रात लगा आज वो खुदा रो रहा रहा था,
मैं तो किसी का हो ना सका आज भी उसकी राह देख रहा था,
कभी हासिल नहीं हो सकता जो मैं उसके ख्वाब देख रहा था,