बेशुमार
बेशुमार


आज वो फिर मिला रास्ते में बांसुरी बजाते हुए,
आज वो फिर मिला वही गीत गाते हुए,
शर्म से लाल मै कुछ कह ना सकी,
उसको देखे बिना मै रह भी ना सकी,
उसने भरे बाज़ार मेरा हाथ पकड़ लिया,
मेरा शहर मेरा नाम पूछ लिया,
मैं डर कर घर भाग आई,
पानी का घड़ा मै कुएं पर ही छोड़ आई,
सब ने पूछा क्या हुआ,
कैसे बताऊं की इस दिल को क्या हुआ,
अनजाने में ना जाने क्या भूल मुझसे हो गई,
ना जाने कब मै उसकी हो गई,
उसके इंतजार में सारी रात जाग कर गुज़ार दी,
सहेलियों ने मेरी हथेली में उनके नाम की मेहंदी भी लगा दी,
उससे प्रीत लगा मै खुद को भूली हूं,
एक उसकी खातिर मै जागना सोना भूली हूं,
क्या रिश्ता है तुमसे मेरा,
क्या नाता है तुमसे मेरा,
ज़माने के सवाल अब सहे नहीं जाते,
यूं बेवजह इलज़ाम अब सहे नहीं जाते,
ये ज़माना सच्चे इश्क़ को कभी जान ना पाया,
खुदा को सब ने पूजा पर खुदाई कोई जान ना पाया,
क्या पता खुद को जला कर ये इश्क़ रोशन हो जाए,
तेरी खातिर सांस गवा कर ये इश्क़ अमर हो जाए,
चल हीर रांझा सी एक कहानी और लिख दे,
चल तेरे मेरे किस्से हम भी कागज पर लिख दे,
लोक लाज के डर से ये इश्क़ कभी ज़ाहिर ना हुआ,
इश्क़ ऐसा कैद था पिंजरे में की कभी आजाद ही ना हुआ।