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Deepika Raj Solanki

Drama

4  

Deepika Raj Solanki

Drama

बचपन से पचपन के रंग

बचपन से पचपन के रंग

2 mins
228


बचपन से पचपन तक,

जीवन के देखें- ना जाने कितने रंग-ढ़ग

दिमाग छोटा, दिल बड़ा लिए जीते थे -

अपनों के संग,

भोली सूरत में मेरी मैया को दिखती थी,

कन्हैया की मूरत,

निस्वार्थ था जीवन, सब थे अपने संग।


आया अब सावन सोलह,

लाया जीवन में नया सवेरा,

अल्हड़ता में तन- मन झूमा,

उमंगों की पतंग को, उड़ाते सपनों के अंबर पर-

मिल साथी हम सब,

ना कोई छोटा, न कोई बड़ा सब थे अपने ही संग,

अठखेलियां में बीत रहा था जीवन का हर पल,


नवयौवन का पहला प्रेम और उस की पाती,

महका देती थी जीवन की हर बाती,

जीवन में आया था नया एहसास

जब आए थे रिश्ते कुछ ख़ास,

नज़रिया अब जीवन का कुछ बदला,

जन्म भूमि को छोड़,कर्मभूमि के लिए दिल तड़पा,

सुकड़ रहा था दिल अब अपना,

दिमाग के तराज़ू में तुल रहा था हर अपना,

पायल की झंकार लिए जीवन में आई नई बहार,


जीवन के सफर में, हमसफ़र मिला अपना,

जिम्मेदारियों का नया पाठ अब और जुड़ा,

खिल गए नए फूल बगिया में अपनी,

कुछ सूखे पत्तों ने भी साथ अब अपना छोड़ा,

चेहरे की चमक को, माथे पर पड़ी रेखाओं ने घेरा,

नव अंकुर की परवरिश में,

बालों ने भी रंग अपना बदला,


बालों में छाई चांदी ने हमें अब पचपन में लाकर छोड़ा,

जिम्मेदारियों का कुछ बोझ अब हमने अपने अंश पर छोड़ा,

हाथों में पड़ी लकीरों और चेहरे की झुर्रियों के साथ उसने हम को छोड़ा,

एकाकी जीवन ने अपने को फिर बचपन की ओर मोड़ा,

जीवन की स्मृतियों को फिर हमने अपने दिल से जुड़ा,

जी लिए हैं सपने अपने कई हमने,


नहीं सुबह की उम्मीद में, इन आंखों ने क्षितिज को अब ताकना छोड़ा,

जीवन के नए पड़ाव पर,

बाहों को खोल कर, जीवन फिर से है अपना जीना।

शतरंज, कैरम और लाठी के संग,

मॉर्निंग वॉक और पार्क के साथियों को ले संग,

जीवन के इस हसीन रंग में भी है रंगना,

बहुत हसीन है जीवन, इसके हर क्षण को है अब खुल कर जीना।


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