महसूस
महसूस
मैं समझता था, दोस्त समझते हैं यह लोग मुझे,
पर समझ न सका क्या समझते हैं मुझे।
न वो प्यार मिला न मिठास मिली,
मन में जो थी बात, बात न मिली।
अपने दिल की बात मैं खोल न पाया,
अपने मन की मिठास घोल न पाया।
मैं एक अन्जान सा महसूस करता रहा,
मन की बात मन में रखता रहा।
ठेस दिल को लगती रही,
हर कही बात उनकी जब दिल को खटकती रही।
भरी महफ़िल में भी तन्हा महसूस करता रहा, हर पल अपने आप से सबाल करता रहा।
समझता हुँ, अन्जान पक्षी उड़ार में आ बैठा हुँ, अपना होते हुए भी पराया बन बैठा हुँ।
मन में यही ख्याल आता है, चन्द दिनों का मेहमान हुँ,
क्या किसी से शिकवा है।
समझता सब कुछ हुँ, समझाना नहीं चाहता,
एक अजनबी हुँ, किसी को आजमाना नहीं चाहता।
जाते, जाते एक बात जरूर सभी से कहुँगा, चन्द दिन जो गुजारे इस
जगह, कभी नहीं भूलूंगा, कभी नहीं भूलूंगा।