गजल(तल्खियाँ)
गजल(तल्खियाँ)
दरिया की मौज मस्ती में अक्सर किनारे टूट जाते हैं,
वहाब तेज हो पानी का तो शिकारे डूब जाते हैं।
शान्त हवा के झौंके होते हैं प्यारे,
तेज आँधी के वहाब से पेड़, पौधे सारे टूट जाते हैं।
मौसम बहार हो तो खिलते हैं फूल सदा,
खजाँ आते ही फूल सारे टूट जाते हैं।
चमकती चाँदनी तो दूर करती है अँधेरा, न जाने
फिर क्यों फलक से सितारे टूट जाते हैं।
खिलते नहीं फुल कभी सहरा में सुदर्शन,
लगती नहीं आग पानी को कभी,
लेकिन तल्खियों में रिश्ते नाते टूट जाते हैं।
सहनशक्ति हो गई कमजोर सभी की,
बुजुर्ग, बच्चों से अक्सर रूठ जाते हैं।
शान्त रख अपना स्वभाव
सुदर्शन, गर्म जोश में आकर न जाने कितने
आपने बैगाने छूट जाते हैं।