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Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

स्त्री के लिए प्यार पूजा

स्त्री के लिए प्यार पूजा

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उन्माद के पल में

एक ही क्रिया को जीते है दो जीव,

मिलन साधने हेतु ,

क्यूँ भाव एक नहीं होते,

स्त्री डूब जाती है प्राकृतिक क्रिया की

चरम को पाने

समर्पित रंभा सी भार्या..!


वो पल पूजा से महसूस करती स्त्री

तन-मन से अत्यंत करीब होती है

अपने आराध्य के प्रति...!


विपरीत कोई

कैसे मासूम को छल जाता है ?

दीये की लौ को बनाकर हवस की आग,

हाँ, दैहिक आग को एक यज्ञ समझता है तो

एक महज़ कामपूर्ति..!


तुम्हारे भीतर तलाशती सत्य की खोज

में मनाती है उत्सव दैहिक पराकाष्ठा का

तुम भावहीन से वस्तु सी भोग लेते हो..!


ये नहीं कोई दिखावा

बाँहें फैलाती आह्वान देती है

तुम्हें प्रवेश की सहमति का तो

मानो शाम के साये में

गंगा की आरती में असंख्य दीपों की

पवित्र ज्योति से जो शमा बनता है..!


ये नज़ारा भरता है

जैसे वेगीला उफ़ान

लहरों में बस कुछ वैसे ही..!


तुम्हारे प्रति विकार या आकर्षण से परे

थाम लेती है तुम्हें अपने भीतर

समूचे अपने अस्तित्व के संग

एकाकार करते हुए..!


तुम सामाने से हटा देते हो

चरमोत्कर्ष के छँटते ही,

नारी जीती है उन पलों को,

एहसासो का तेल सींचे लौ को

प्रज्वलित सी ताज़ा रखती है,

प्रेम भोग नहीं पूजा का दूजा नाम है

उसके लिए।।



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