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मेरी कविता को

मेरी कविता को

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प्यार तो करते हैं
पर कहते नहीं हैं
अपने में छुपाए रखते हैं
बस दिखाते नहीं हैं।

लिखने में क्या हर्ज है?
बस एक ही मर्ज है,
यही कहना है आप से
कि मुहब्बत कर लो हमसे।

नहीं मानोगे तो में और लिखूंगा
अपनी बात मनवा के रहूंगा
जब तक मेरी कलम में ताकत है
कोई शिकायत नहीं है।

आप बन सकती हो
रू-ब-रू मिल सकती हो
रूप रंग से भी लगती हो
मेरी चाहत में रंग भी भरती हो।

मेरा लगाव है तुम से
में भी लिखता हूं दम से
हर तरह के हथकंडे अपनाता हूँ
तुम्हें गर्मजोशी दिखलाता हूँ।

तुम हँसती हो तो फूल खिल जाते हैं
जैसे सब पक्षी झील की ओर जाते हैं
मैं भी सपनों के शहर में पहुँच जाता हूं
तुम्हें देख बड़ी खुशी पाता हूं।

बस ये सिलसिला चलता रहेगा
रचना से कविता का रूप बनता रहेगा
लोग पढ़ेंगे और सराहेंगे
मेरी कविता को लोग अपने अंतर्मन से देखेंगे।

 


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