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Hasmukh Amathalal

Abstract

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Hasmukh Amathalal

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बात मिसाल की

बात मिसाल की

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कल्पना की कोई सीमा नहीं

इज्जत जैसी कोई गरिमा नही

गंगा जैसे कोई सारिता नहीं

और इंसान जैसा कोई फरिश्ता नहीं।


दिमाग घूम जाता है

यदि कोई उल्टा-सीधा कर देता है

अपनों से अपना उल्लू सीधा कर देता है

और इंसानियत के नाम पर बट्टा लगा देता है।


सुना भी है ओर पढा भी

बहुत से लोगों के साथ लड़ा भी

बात मिसाल की नहीं है

पर हरकत जूठे इंसान की है।


कहते हैं "कपड़ों के पीछे हर कोई नंगा है"

पवित्र बन जाओ डुबकी लगाकर क्योकि नदी गंगा है

यदि ऐसा हो जाता है तो हमें क्यों पश्याताप करना है?

बड़े बड़े पूजा स्थलों में जाकर क्यों प्रार्थन

ाए करना है?


ये वहम ही नहीं

बदमाशी की पराकाष्टा है

नीच किसम की चेष्टा है

देखते हुए भी हरकत दुष्टा है।


मलिन भावनाए, नीच हरकते

हमारे दिल कभी नहीं पसीजते

जब तक कुदरत की मार नहीं लगती

और उसकी गाज अपनों पे नहीं गिरती।


इंसान का है ये बचपना

बदहवस और मलिन मनोकामना

हरदम धोखा देने की कोशिश और कामना

जल्दी से धनवान होने की लालसा और नाम पाने की तमन्ना।


मैं नहीं जानता कहाँ जाकर लालसा रुकेगी !

मन की लालच कहाँ जाकर पटेकगी

मुझे नहीं मिली तो तेरे को भी नहीं लेने दूंगा

मर जाऊंगा और मार भी दूंगा!



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