गति ही जीवन
गति ही जीवन
प्रकृति सजीवन है
गति ही जीवन है
ये संसार सारा उपवन है
हम उस वनके मानवफूल है।
एक जाता
ओर दुसरा आता
कोई नाम कमाता
कोई नाम नीलाम नाम कराता।
यदि फैलाना चाहो अपने आपको
तो मान - जीवन को महकाओ
अपने जीवन पर चार चाँद लगाओ
कोई पीछे याद करे ऐसा काम करके जाओ।
ना लेना किसी से उधार
अपकार का बदला देना कर के उपकार
बनो दानवीर, शूरवीर या चित्रकार
पर ना बनो विषैले, कभी रख के अहंकार ।
फूल बनो सुगंध को प्रस्रावो
पर अग्नि बनकर ना जलाओ
सब के चेहरेपर ख़ुशी को जताओ
नाचीज हो,नादान हो, इसे कभी ना जुठलाओ।
ये जीवन है बेशुमार कीमती
प्रभु को कहना, दे मुझे सन्मति
जीना है तो सहना पडेगा
आगे भी तो बढ़ना पडेगा।
अकेले आए हो, जाओगे भी अकेले
संसार के सब दुःख को झेले
रहोगे यदि मन के मतवाले
कहलाओगे सज्जन और हिम्मतवाले।