ना सीखी
ना सीखी
ना सीखी
शुक्रवार, २८ अगस्त २०२०
ना सीखी हमने होशियारी
बस निभायी है यारी
जो समय आते पड गयी भारी
हम देखते ही रह गए क्योंकी हमें नहीं मिली खेलने को पारी?
जो जिंदादिल है वो दफन नहीं होते
वो है कफ़न पहने हुए चलते
वो मस्तराम है फ़िक्र नहीं करते
बस कुछ कर गुजरने का दम भरते।
मुर्दे क्या खाक बोलेंगे?
कया उनमे है ताकत बोलने की "हम खाल उधेड़ेंगे"?
जवांमर्द तो वो है, जो कहता है" में तारे तोड़ लाऊंगा"
असली मर्दानगी को जरूर दिखलाऊंगा।
हमने शब्दों का जाल नहीं बुनना
पर असली बात को बखूबी से चुनना
दिल से बतलाना"क्या खराबी है उस में "?
फिर तह तक जाकर सोचना उसी में।
समय बतलाएगा की गम किस में है?
क्या आनद खोने में है या पाने में है!
वो आदमी,आदमी ही क्या जिसे सब बात में हर्ज है ?
नहीं जानता वो मूरख की उसका फर्ज क्या है?
बहुत रो लिए फटे हुए दूध पर
नहीं मजा ले पाए उसके स्वाद पर !
जिंदगी यूँ ही कट जाएगी सवालों के गेरे में
अपनों के और गैरों को समजने में।