मीठा और शुद्ध जल
मीठा और शुद्ध जल


कुँए की गहराई
कभी ना नाप पाई
जल कितना मीठा और शुद्ध
पिते , नर, नारी ओर वृद्ध
वैसे तो विशाल होता तालाब
नहीं आता कभी उसमे सैलाब
तालाब का होता अपना रूतबा ओर रुआब
लुफ्त लेते लोग मिलाके पानी के साथ शराब।
पानी देता कुछ और ही आनंद
पिने के बाद मुस्कान मंदमंद
तृप्त हो जाता मन और देता आशीर्वाद
हम कभी ना करते पानी बर्बाद।
पानी के बिना दुनिया लगती पराई
पानी है तो समृद्धि आई
&nb
sp;पानी के बिना श्रुष्टि नहीं टिक पाई
हमें खुद लगता जीवन बेकार जाई।
हवा, पानी और आग
प्रकृति के मिल भाग
हमारा शरीर भी उनका एक अंग
बनता शरीर इनसे और हो भी जाता भंग।
जीवन में मीठास को लाना सहज नहीं है
आप रूखे रहना चाहोतो कोई परहेज नहीं है
रह जाओ बनके बरगद का पेड़
और दो लोगों को परछाई की भेंट।
अन्तर्मन जी शान्ति
और कुँए का मीठा पानी
ला देते जीवन मे बानी
वरना तो लगती हमें धुलधानी।