STORYMIRROR

Nishigandha Kakade

Drama Fantasy

4  

Nishigandha Kakade

Drama Fantasy

चुप्पी

चुप्पी

1 min
565

चूप चूप सी थी जिंदगी,

वो ना हसती थी ,

ना जी भरके रोती थी,

गुम सुम सी रेहती थी !


हर रोज वही लमहा जिते थे ,

हर काम मनसे करते थे,

घर से ना निकले तो,

एकांत से पारेशान होते थे !


वही लमहा,वही सब

बार बार वोही पल जिते थे,

हसणा तो जैसे भूल ही गये थे,

निकलना था इससे मगर....


गुम थे हम अपने आप में,

ना वक्त था ना ठिकाणा,

जरुरत की ही बात करते थे हमें,

तुम मिले तो चुप्पी बोल उठी ! 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama