दो कलियाँ !
दो कलियाँ !
(मेरे जीवनसाथी और मेरी 2 बच्चियों के लिये ये कविता है)
आप से शुरू हुई जिंदगी मेरी
जीना मरना बस आपके ही संग
हकीकत बने आप मेरी आज के
प्यार भरा झगड़ा भी आपके ही संग
कुछ तनाव भी तो थे चल रहे
जी रहे थे उसके भी साथ हम
उजाले आये कभी घने अंधेरे
आप मेरे पहाड़ बने और झेलते गये
हर एक घाव जो अपनों ने दिया
मुझे संभालते गये तब तब
जब जब मैं टूट जाती थी
कुछ पुण्य किए थे शायद हमने
इसलिये हमारे बाग में
दो कालिया खीली और जिंदगी खील गई!
उनको देखकर हम इतने चहकने लगे
की गम का साया आज तक छू भी न सका!
