समंदर की तपिश!
समंदर की तपिश!
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बुझी हुई सिमटी सी राख में
कहीं तो अभी भी तपिश बाकी है,
अगर कोई छेड़ भी दे उसे ,
उस सुलगती तपिश में भी फिर से,
सब राख करने की हिम्मत है!
मन में पूरा समंदर बसा के,
मनुष्य भी बाहर सूखा दिखता है,
मन के तार छेड़े कोई तो,
पूरे जीवन में सैलाब लाकर,
सब एक पल में तबाह कर देता है!
