क्या लिखू?
क्या लिखू?
सोचा आज कुछ दिल से लिखूं ,
लिखूं तो क्या लिखूं वो भी ना समझूं ,
खुद को खुद के सामने रख़ू के बेपर्दा करूं ?
खुद को महकता गुलफशा कहूँ की सूखा बागान कहूँ ?
खुद इश्क में फनाह हो जाऊँ के अपने आप को जखड लूँ ?
खुद सुहानी शायरी बोल दूँ के बेजुबान बन जाऊँ ?
खुद को मेहकाऊ इत्र से की कफन ओढ के छुप जाऊँ ?
खुद को सुकून बक्षू के खुद को ही बरबाद कर दूँ ?
बहोत है कहने सुनाने को बस ऐसा लग रहा है,
कि हमेशा के लिये मौन ही रख लूँ !
रहम कर ए खुदा मुझपे और मैं क्या बताऊँ ?
