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Nishigandha Kakade

Abstract

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Nishigandha Kakade

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क्या लिखू?

क्या लिखू?

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सोचा आज कुछ दिल से लिखूं , 

लिखूं तो क्या लिखूं वो भी ना समझूं ,

खुद को खुद के सामने रख़ू के बेपर्दा करूं ?

खुद को महकता गुलफशा कहूँ की सूखा बागान कहूँ ?

खुद इश्क में फनाह हो जाऊँ के अपने आप को जखड लूँ ?

खुद सुहानी शायरी बोल दूँ के बेजुबान बन जाऊँ ?

खुद को मेहकाऊ इत्र से की कफन ओढ के छुप जाऊँ ?

खुद को सुकून बक्षू के खुद को ही बरबाद कर दूँ ?

बहोत है कहने सुनाने को बस ऐसा लग रहा है,

कि हमेशा के लिये मौन ही रख लूँ !

रहम कर ए खुदा मुझपे और मैं क्या बताऊँ ?



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