मेरा प्यारा गाँव
मेरा प्यारा गाँव
कितना प्यारा गाँव है मेरा ! हाँ ! मेरा गाँव सचमुच कितना प्यारा है ।
वहाँ दिखावे कि दरियादिली नहीं होती !
वहाँ अगर किसी की छप्पर में छेद भी हो जाये तो
सब मिलकर छप्पर का बोझ उठाते हैं।
वहाँ के लोगों की जिंदादिली, जो प्राप्त है वही पर्याप्त है कि भावना
मन को एक असीम सुकून पहुँचाती है।
पर एक बात की कमी है कि वहाँ के लोगों में स्फूर्ति बहुत ज्यादा है !
पता ही नहीं चलता कि कब वो काम शुरू किये और कब समाप्त कर दिये !
और काम समाप्त कर देने के बाद लग जाते हैं दूसरों का हाल-खबर लेने !
बेचारे की खुद की हाल बेहाल है और फलनवा के हल के फेरा में लगे रहते हैं भाई साहब!
वहाँ सबको फुर्सत से फुर्सत मिल जाता है !
प्रकृति के गोद में तो वे ही सो पाते हैं !
उसके ही देख-रेख में धूल- मिट्टी में बड़े कब हो जाते हैं पता ही नहीं चलता !
सच में कितना प्यारा है, न गाँव मेरा !
वहाँ की देशी- ठाठपन सबको एक ठहराव देते है जीने का !
वो आम का पेड़ वो बगीचा सच में कितना मनोहर दृश्य था उस पहर का !
भीड़ - भाड़ से दूर मेरे गाँव मेरे शहर का !
ठंड के दिनों में वो आग का अलाव!
जहाँ ठंड के ठिठुरन भरी सर्द दिनों में शामिल होते - होते वहाँ जमघट लग जाती थी !
वही प्यारा गाँव मुझे पुकार रहा है !
हाँ !मेरा गाँव, मेरा प्यारा गाँव मुझे पुकार रहा है !
