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Kanak Agarwal

Abstract Romance Fantasy

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Kanak Agarwal

Abstract Romance Fantasy

कविता

कविता

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200

बात दिल में थी,

जुबां पर ना आई...


भाव गहरे थे,

पर जो कह ना पाई..


दिल में घुमड़ते थे,

कभी नैनों से बहते थे,

हंसी बन कभी,

लबों पर बिखरते थे...


नैनों की भाषा भी,

जब समझा ना पाई..


शब्दों ने आकर ,

तब मुझे थामा था..

रूप भावों को दे ,

कागज़ पर उतारा था..


भाव मेरे अर्थ तुम्हारा,

मिलकर बने जो वह,

कविता कहलाई थी...


फुरसत हो तो,

कभी पढ़ लेना,

जो ना कह सकी,

वो भी समझ लेना...


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