कविता
कविता
बात दिल में थी,
जुबां पर ना आई...
भाव गहरे थे,
पर जो कह ना पाई..
दिल में घुमड़ते थे,
कभी नैनों से बहते थे,
हंसी बन कभी,
लबों पर बिखरते थे...
नैनों की भाषा भी,
जब समझा ना पाई..
शब्दों ने आकर ,
तब मुझे थामा था..
रूप भावों को दे ,
कागज़ पर उतारा था..
भाव मेरे अर्थ तुम्हारा,
मिलकर बने जो वह,
कविता कहलाई थी...
फुरसत हो तो,
कभी पढ़ लेना,
जो ना कह सकी,
वो भी समझ लेना...