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Rashmi Singhal

Tragedy Inspirational

4.7  

Rashmi Singhal

Tragedy Inspirational

मैं भी, इंसान हूँ

मैं भी, इंसान हूँ

1 min
376


न मैं नर हूँ न ही नारी, इसलिए

समाज नहीं स्वीकारता है मुझे,

आखिर इसमें क्या ग़लती मेरी?

जो हर कोई धिक्कारता है मुझे,


मिलती है मुझे बलाएँ पर 

मुझ से सब दुआएँ पाते,

ख़ुशियाँ नहीं दामन में मेरे 

पर ख़ुशियों में मुझे बुलाते,


मेरे पास भी दिल है फिर क्यूँ

मुझसे किसी को प्यार नहीं,

मैं भी तो अंग हूँ समाज का

पर मिलते क्यूँ अधिकार नहीं,


मेरे माँ-बाप तक मुझ को पैदा 

करके, रह गए हक्का- बक्का,

नहीं दोष फिर कोई किसी का

जो कहते हैं मुझ को छक्का,


न बन सकूँ माता मैं और

न ही बन सकूँ मैं पिता,

मरने पर भी होती नसीब

मुझ को सबसे अलग चिता,


सड़क, गली, नुककड़, चौराहों

पर जब, बजती है मेरी ताली

हँसते हैं मुझ पर लोग सभी

और देते हैं मुझ को गाली,


पढ़े-लिखे इस दौर में, समाज

अभी तक क्यों है पिछड़ा,

मैं तो खाली तन से ही हूँ, पर

लोगों की तो, सोच है हीजड़ा,


माना मुझ में तुम जैसा ना 

साधारण कोई इंसान है,

पर मुझ को रचने वाला भी

तो, परम-पिता भगवान है,


ये दुनिया अर्धनारीश्वर की

कर लेती फिर कैसे भक्ति ?

देखो अगर रूप जो उनका तो

हैं वे भी, आधे शिव-आधी शक्ति,


छक्का, हीजडा, किन्नर आदी 

कह कर, मत करो मेरा अपमान,

करते हो ईश्वर की सच्ची भक्ति

तो, देखो मुझ में भी इक इंसान,


जाने इसको मैं क्या विषय दूँ 

कैसे दूँ मैं, इसको अंजाम,

समझ न पाऊँ इस कविता को

दूँ आखिर - "क्या मैं नाम" ?



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