रँग और उमंग
रँग और उमंग
रंगों से बनती बिगड़ती दुनिया देखी,
और रंगों से सँवरती हुई दुनिया भी देखी।
ये रंग ही तो है जीवन को महकाने वाले।।
और ये रंग ही है जो लगते कभी बेरंग निराले,
कभी जीवन मे बिराने को बताने वाले।
और कभी जीवन में रँगनीयत को बढ़ाने वाले।।
किसी ने महकती हुई शामों को इनसे सींचा।
किसी ने शान्त सुप्त बिरह को इनसे सींचा।
कोई रंगों में ढूंढता है गुजरे जमाने निशाँ,
कोई रंगों से ही निखारता है जीवन की दुश्वारियां।
ये रह रह कर भी ताजगी का अहसाश दिलाते है रँग,
और कभी कभी ये रंग कर देते हैं जीवन को बेदर्द बेरंग।
उस पर रंगों की हर पंक्ति भी खो देते है जीवन के हर उमंग।