यादों में न आया करो
यादों में न आया करो
दम घुटता है
इन दीवारों,रिश्तों, भावनाओं
और उन सब वादों-यादों के बीच
जो हैं तो अपने पर बोलते हैं पराये बोल
काश! एक कमरा होता सिर्फ मेरा
जहाँ होती मैं और होता मेरा अश्क
दोनों छलकते साथ-साथ
कुछ तो कम ज़रूर होता साँसों का बोझ
कमरा न सही एक कंधा ही होता
जिस पर रख देती मन का बोझ
कंधा वह पराया होता
सुनने न होते बेतुके अपनेपन के बोल!