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Suparna Mukherjee

Tragedy

3  

Suparna Mukherjee

Tragedy

यादों में न आया करो

यादों में न आया करो

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दम घुटता है 

इन दीवारों,रिश्तों, भावनाओं

और उन सब वादों-यादों के बीच

जो हैं तो अपने पर बोलते हैं पराये बोल

काश! एक कमरा होता सिर्फ मेरा

जहाँ होती मैं और होता मेरा अश्क

दोनों छलकते साथ-साथ 

कुछ तो कम ज़रूर होता साँसों का बोझ

कमरा न सही एक कंधा ही होता

जिस पर रख देती मन का बोझ

कंधा वह पराया होता

सुनने न होते बेतुके अपनेपन के बोल!


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