ज़िंदगी और ज़िस्म
ज़िंदगी और ज़िस्म
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ज़िंदगी भी ज़िस्म समान है
कुछ हिस्सा नुमाइश के लिए
तो कुछ हिस्सा छिपाने के लिए
संसार के रंगमंच में हर दिन
नुमाइश कर रही है
ज़िंदगी कोई नहीं देखता
फ़िक्र है सबको अपने दामन की
कालिख लगने का न हो डर
तो नश्तर चलाने को तैयार है सब
ज़िंदगी और जिस्म के नील सुन्न
पड़े हिस्सों पर
