STORYMIRROR

Suparna Mukherjee

Abstract

3  

Suparna Mukherjee

Abstract

स्त्री विमर्श की यात्रा

स्त्री विमर्श की यात्रा

1 min
332

स्त्री विमर्श और कुछ कर के दिखाओ

के बीच में फँसी रही गई है 

आज की स्त्री


पुरुष से होड़ लगाते लगाते

अपने स्त्रीत्व से दूर हो गई है

आज की स्त्री

कैसा दुखद दृश्य है 


साज श्रृंगार से विरक्त 

गीत संगीत से रिक्त

मशीन की भाँति भागदौड़ कर रही है


आज की स्त्री

फिर भी कोई इससे संतुष्ट नहीं

यह खुद से संतुष्ट नहीं


लेकिन खुद को दशभुजा का अवतार

मानकर खुद को ही ठग रही है

आज की स्त्री।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract