स्त्री विमर्श की यात्रा
स्त्री विमर्श की यात्रा


स्त्री विमर्श और कुछ कर के दिखाओ
के बीच में फँसी रही गई है
आज की स्त्री
पुरुष से होड़ लगाते लगाते
अपने स्त्रीत्व से दूर हो गई है
आज की स्त्री
कैसा दुखद दृश्य है
साज श्रृंगार से विरक्त
गीत संगीत से रिक्त
मशीन की भाँति भागदौड़ कर रही है
आज की स्त्री
फिर भी कोई इससे संतुष्ट नहीं
यह खुद से संतुष्ट नहीं
लेकिन खुद को दशभुजा का अवतार
मानकर खुद को ही ठग रही है
आज की स्त्री।