कुछ बातें....
कुछ बातें....
कुछ बातें कहनी अब भी बाकी है,
कुछ बातें सुननी अब भी बाकी है...
हां, मैं खूब जानती हूं कि ये
वतन हमारा सब कुछ है,
पर कुछ तो तुम पर मेरा
हक अब भी बाकी है...
कुछ बातें कहनी अब भी बाकी है....
दरवाज़े पर तोरण लगा कर,
आंगन में रंगोली सजाए,
चौखट पर बैठी तुम्हारी राह निहारुं...
किसी त्योहार पर अब नहीं आते तुम...
पर इस दीवाली नन्हे आने वाले
मेहमान से तुम्हें मिलवाना बाकी है....
कुछ बातें अब भी कहनी बाकी है......
तुमने कहा था जल्द तोहफों के साथ
वापसी ठाठ-बाट से करोगे,
नया दुपट्टा, चूड़ी, झुमका, गहना
और ना जाने क्या क्या मेरे हाथों में धरोगे,
पर अजब ये सिपाही संदेसा लाए हैं
ये क्या....???
तिरंगे में लिपटा कर ये क्यों
तुम्हें लाए हैं..???
सभी को तुम्हारी शहादत पर
अपार गर्व है....!!!
पर मेरी तो....
कुछ बातें अब भी कहनी बाकी है...
पर मुझे तो कुछ बातें अब भी
सुननी बाकी है....।।
पर मेरी तो कुछ बातें ....