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Kapil sharma

Abstract Tragedy Others

4.4  

Kapil sharma

Abstract Tragedy Others

जो कभी ....

जो कभी ....

1 min
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जो कभी खुले आंगन की महफ़िलो में हँसते थे, 

आज अपना ग़म छुपाने के लिए किनारा ढूँढते है।

जो कभी दूसरों को खुश रहने की सलाह देते थे, 

आज वे खुद ही ग़म की बारिश में भीग रहे है।


जो कभी आँधी तूफ़ान बरसात से झूझकर

मिलने चले आते थे, 

आज वे ही न मिलने के बहाने ढूँढते है। 

जो कभी दूसरों की भलाई के लिए दुआ मांगते थे,

आज खुद के जीवन में स्वार्थपरता ढूँढते है।


जो कभी मिलजुलकर रहने का वादा किया करते थे,

आज वे ही खुद सरहदे बनाने के लिए तत्पर है।

जो अपनों के सामने अपना दिल खोलकर रख देते थे,

आज वे स्वयं से बातें करने के लिए भी वक़्त की तलाश में है


जो कभी विश्व प्रसिद्ध होने की चाह रखते थे ,

आज वे अपनी ही नज़रों में गिर गए है।

बचपन में पढ़ा था कि बदलाव अच्छे होते है ,

परंतु कुछ बदलाव ऐसे होते है ज़िंदगी जीने की

वजह छीन लेते है।

न जाने क्या बदल गया 

लोग, उनके जज़बात या उनके हालात …….


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