ज़िंदगी
ज़िंदगी
एक एक लम्हा बीतता चला
सुकुने दिल की तलाश में कई बार नज़रे रुक जाती है
फिर धोका खाकर अश्रु सौगात लिए
अजीब सी तुटन लिए जिंदगी बेसहारा गुजरती है
बेबाक हँसी के पीछे कितने गम छूपे हैं
हर संबंध में सहारा बनके हम थोड़ा थोड़ा कटे हैं
कोई हमदर्द मिले तो के हदे दास्तान जिंदगी
तेरी बेरहहिमी की पर चमकते दमकते बाज़ार में
कहाँ सच्चे दिल फरिश्ते मिलते हैं
पीछे मुड़कर जिंदगी हम जब भी तुझे देखते हैं
हसीन चेहरों के पीछे कई भरोसे के काबिल दिखते हैं
हम ही कसूरवार हैं
जो इतनी ऋषवाय करके आये जिंदगी बार बार भरोसा करते हैं...