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Amruta Thakar

Action

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Amruta Thakar

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काली

काली

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चीख मेरी गूँजती है

अन्याय को अब चुनौती दूंगी

शरीर को घाव देने वालों के

रक्त से नहाऊँगी

हर एक सर वो कटेगा

जो अभिमान में रत है

बहुत करूणा लुटाई है

अब इंतकाम की आग बनूंगी

दुखी लाचार जीवों को

मैं पालव में समा लूंगी

पाप के नंगे नाच का

भयावह परिणाम दूँगी

प्रकृति हूँ, शक्ति हूँ , मातृत्व हूँ

अब हद हो गई हैवानियत की

काली बनके जागी हूँ

आतताई के चीखों को

कबसे सुन रही हूँ

कई अबला की लाज लुटी

भुख और लाचारी का मजाक हुआ

सेवा और प्रगती के नाम पे

लुटेरों का दरबार लगा 

एक एक को चुनूंगी

इंसाफ बराबर करुंगी

प्रकृति हूँ , शक्ती हूँ, मातृत्व हूँ,

संहार से नवसर्जन करुंगी

काली बनके जागी हूँ!



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