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Sonia Chetan kanoongo

Abstract Tragedy

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Sonia Chetan kanoongo

Abstract Tragedy

बहुत कुछ था उन्हें बताने को???

बहुत कुछ था उन्हें बताने को???

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बहुत कुछ था उन्हें बताने को,

निगाहें तरसती रही उनसे निगाहें मिलाने को।

ना जाने किस उधेड़बुन में वो व्यस्त थे,

उन्हें फिक्र नही थी मेरे अरमानों की।

दिल उम्मीदों की दीवारें बना रहा था,

और वो परदों में अपने दिल को छुपा रहे थे।


कैसे उनसे रूबरू करते ख़ुद को,

वो हदे बड़ा रहे थे, हम हदे मिटा रहे थे।

कहने को एक दो जिस्म एक जान थे हम,

पर इस झूठ से हम खुद को ही बहला रहे थे।


सात फेरों की रस्मों से बंधी डोर थी एक,

वो खिंचे जा रहे थे, हम ख

िंचे जा रहे थे।

मोहब्बत के नाम पर बस रातों को सेज सजाई थी,

शायद यही वजह थी, दोनो निभा रहे थे।

रूठने मनाने की कोई जिल्लत ही नहीं थी।

बस शिकवे और गिले थे, जिसे जिये जा रहे थे।

वो कहते थे मुझसे, बहुत कुछ है इस जमाने में।

पर हम तो उन्हें ही दुनिया बता रहे थे।


डोली में बैठ कर आये थे, अर्थी में जाना था,

यही रस्म जमाने ने बनाई थी, बस वक़्त बिता रहे थे।

अरमान तो बहुत थे कि मोहब्बत का गुलाब खिलाएंगे,

हम बस काँटों में अपने हाथ फँसा रहे थे।



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